Saturday, December 5, 2015

क्युं?




सुबह तुम्हारी, रौशनी तुम्हारे,
अंधकार ही सारे मेरे क्युं?
अंधकार चलो दिए तो दिए
उन अंधकारकी चन्द्रमा भी तुम्हारे क्युं?

क्या मैने ऐसा मांगलिया
जो तुम दे नही सकते,
आखिर दे नही कुछ सकते,
तो देनेका इसारा दिखाया क्युं?

घरमे लेना है इतना मुश्किल
तो बाहर जाके हम मांगे क्युं?
आदिकवि तुम्हारे, महाकवि तुम
तो मैं तुम्हारी धर्तीको अपना मांगु क्युं?

स्वर्ग तुम्हारी, जन्नत तुम्हारे
बचाखुचा नर्क मेरा क्युं?
नर्क मेरा हुवा तो हुवा,
ये नर्क चलानेवाला यमराज तुम्हारा क्युं?



2 comments: